दो युद्धों में पश्चिम की शक्ति बंटने से रूस, चीन को फायदे की उम्‍मीद

05 Nov, 2023
Deepa Rawat
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न्यूयॉर्क, 5 नवंबर (आईएएनएस)। पश्चिम को अपने सहयोगियों के साथ दो युद्धों का सामना करना पड़ रहा है जो उनकी ताकत को क्षीण कर रहे हैं। वहीं रूस, चीन और ईरान उग्र इजरायल-हमास संघर्ष से लाभ उठाना चाह रहे हैं।

इन देशों और इनके कथित सहयोगियों जैसे उत्तर कोरिया और वेनेजुएला को पश्चिम एशिया में अमेरिकी राजनीति को लगे इस झटके से अलग-अलग तरह से फायदे हो सकते हैं।

युद्ध लंबा खिंचने पर ईंधनों की कीमतों में तेजी भी देखी जा सकती है।

इज़रायल-हमास संघर्ष में कोई स्पष्ट समापन बिंदु या आक्रमण के बाद की कोई योजना नहीं है जिससे पहले से ही संदिग्ध स्थिति और अधिक संदिग्ध हो जाती है।

रूस के आक्रमण के शिकार यूक्रेन के इर्द-गिर्द पश्चिम एकजुट हो गया और संकटग्रस्त कीव को न केवल सहानुभूति दी बल्कि धन, हथियार और राहत भी दी।

अब उन्हें इज़रायल की भी सहायता करनी होगी, और अपने संसाधनों पर दबाव डालते हुए, गाजा को राहत देने के लिए कुछ अलग करना होगा।

यूक्रेन के साथ युद्ध के मामले में रूस लगभग अलग-थलग पड़ गया। पिछले साल अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 143 देशों ने आक्रमण की निंदा की थी और रूस से यूक्रेन से वापस हटने की मांग की थी।

लेकिन अब ध्यान इजरायल-हमास संघर्ष पर केंद्रित हो गया है और रूस के साथ 120 देश आ गये हैं जिनमें ज्‍यादातर दक्षिण के देश हैं, जिन्होंने इजरायल-हमास संघर्ष में युद्धविराम की मांग वाले प्रस्ताव पर मतदान किया था। हालांकि प्रस्‍ताव सुरक्षा परिषद में गिर गया। अमेरिका को उस प्रस्‍ताव को गिराने के लिए वीटो करना पड़ा था।

युद्धग्रस्‍त यूक्रेन की मदद करने की थकावट को स्‍पष्‍ट करते हुये रिपब्लिकन-बहुल अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने गुरुवार को केवल इज़राइल को सहायता (14.3 अरब डॉलर की राशि) देने के पक्ष में मतदान किया और फिलहाल, यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता रोक दी जिसे डेमोक्रेट-बहुमत ने पारित कराया था।

चीन, जिसने ईरान और सऊदी अरब के बीच मेल-मिलाप कराकर पश्चिम एशिया की कूटनीति में कदम रखा था, इजरायल और सऊदी अरब को एक साथ लाने के अमेरिकी प्रयासों में किसी भी झटके से खुश ही होगा।

मॉस्को की तरह, बीजिंग को भी विश्व मंच पर वाशिंगटन के अलग-थलग होने से फायदा होगा क्योंकि वह इजराइल का लगातार समर्थन कर रहा है, जिससे ब्रिटेन और फ्रांस जैसे सहयोगी भी हाथ खींच रहे हैं।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को नियंत्रित करने की नीति में अपने राजनयिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लगा दिया था, जबकि पश्चिम एशिया पर ध्यान कम कर दिया था।

अमेरिकी कूटनीति का ध्‍यान पश्चिम एशिया की तरफ मुड़ना चीन के हित में हो सकता है।

बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सप्ताहांत या अगले सप्ताह सैन फ्रांसिस्को में मिलेंगे। बीजिंग को उम्मीद हो सकती है कि अमेरिका उसके प्रति अपना रुख नरम करेगा – या कम से कम और सख्त नहीं करेगा।

अमेरिका के लिए ख़तरा इजरायल को पूर्ण समर्थन देने के वादे के बाद उसके द्वारा किए गए विनाश की छवियों से है, जिससे ऐसा लगेगा कि वह इस विनाश में भागीदार है।

हमास के आतंकवादी हमले पर पहली प्रतिक्रिया में, जिसमें लगभग 1,400 लोग मारे गए और सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया गया, बाइडेन ने इज़रायल को बिना शर्त समर्थन की पेशकश की, बिना इस बात का अंदाजा लगाए कि इसकी प्रतिशोध कितनी दूर तक जाएगी।

गाजा अस्पताल के पास एम्बुलेंस के काफिले पर इज़राइल द्वारा किए गए हमले की तस्वीरें फ़िलिस्तीनियों और उनके समर्थकों के फ़ायदे के लिए दुनिया भर में गूंज रही हैं।

ईरान, जिसे अमेरिका और इज़राइल दोनों ने (प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों के खिलाफ षडयंत्र और हत्या के माध्यम से) कुचल दिया है, इस लड़ाई में शामिल होने के लिए उत्सुक नहीं दिख रहा है; जबकि उसके वैचारिक सहयोगी इसमें शामिल हो चुके हैं – यहां तक ​​कि यमन में हौतियों ने इजरायल पर रॉकेट लॉन्च किए हैं।

वह हमास को भौतिक सहायता नहीं भेज सकता और उसके पास उस पर या हिजबुल्ला पर कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन यह उनकी कार्रवाई की राह को निर्धारित करने में मदद करने में भूमिका निभा सकता है।

हताश प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू क्या कर सकते हैं इसके बारे में अभी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन ईरान अपने परमाणु प्रयासों को जारी रखते हुए भी कुछ राहत की उम्मीद कर सकता है।

यहां इस समझने का प्रयास किया गया है कि संघर्ष का कुछ अन्य देशों और संयुक्त राष्ट्र पर क्‍या प्रभाव होगा।

संयुक्त राष्ट्र:

संयुक्त राष्ट्र वीटो-शक्ति संपन्न सुरक्षा परिषद के सदस्यों रूस और अमेरिका के बीच पावरप्ले के चक्र में उलझा हुआ है और युद्ध रोकने में असमर्थ है।

लेकिन मिस्र के रास्‍ते गाजा में राहत सामग्री पहुंचाने के महासचिव एंटोनियो गुतरेस के अथक प्रयासों के माध्यम से इसने कुछ हद तक खुद को बचा लिया है। वह इजरायल को उन सभी बातों पर राजी नहीं कर पाए, जिनकी जरूरत थी, लेकिन कम से कम कुछ राहत जरूर मिल रही है।

संयुक्त राष्ट्र के 13,000 से अधिक कर्मचारी गाजा में उसकी फिलिस्तीन राहत शाखा के लिए काम करते हैं। उनमें से कम से कम 70 इज़रायल के हवाई हमलों में मारे गए हैं।

गुतरेस ने दोनों पक्षों द्वारा नागरिकों पर किए गए हमलों की आलोचना की है, जिससे इज़रायल नाराज हो गया है, और उनके इस्तीफे की असंभव मांग की है।

मिस्र:

मिस्र, हालांकि तीन दुश्‍मनों का सहयोगी नहीं है, गाजा के लिए कूटनीति और राहत के लिए एक नोडल बिंदु बनकर अलग-अलग तरीके से लाभ उठाता है और वाशिंगटन को मानवाधिकारों पर आलोचना बंद करनी पड़ती है।

अन्य पश्चिम एशियाई देश भी इसकी भूमिका स्वीकार करेंगे।

कतर:

कतर, जो अक्सर अपने खाड़ी पड़ोसियों के साथ मतभेद रखता है और अपने संदिग्ध संबंधों के लिए अमेरिका द्वारा उस पर अविश्वास किया जाता है, फिर से कार्रवाई के केंद्र में है, उसी तरह जैसे वह अफगानिस्तान में था।

हमास तक उसकी पहुंच ने बंधक संकट से निपटने और हमास के साथ पश्चिम देशों के संवाद स्‍थापित करने में मदद की है।

सऊदी अरब:

इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य करने की सऊदी अरब की उम्मीदों को झटका लगा है।

गाजा में इजरायल की व्यापक जवाबी कार्रवाई में नागरिक हताहतों के प्रति जनता की नाराजगी से कट्टरपंथी किस्म के आंतरिक विरोध को बढ़ावा मिल सकता है।

संयुक्त अरब अमीरात:

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध और इज़राइल के साथ विकासशील संबंध हैं जो अब संकट में हैं। उदाहरण के लिए आई2यू2 साझेदारी जिसमें भारत भी शामिल है।

लेकिन गाजा संघर्ष पर अमेरिका का विरोध करते हुए, उसने अब तक बहरीन की तरह कोई त्वरित कार्रवाई नहीं की है, जिसने इज़राइल से अपने राजदूत को वापस ले लिया और उसके साथ व्यापार बंद कर दिया।

जॉर्डन:

जॉर्डन को डर है कि सीरिया और इराक में ईरान के प्रतिनिधियों द्वारा या तो उस पर या उसके ऊपर इजरायल पर हमले किए जाएंगे, जिनके साथ उसकी सीमाएं लगती हैं।

उसने अमेरिका से पैट्रियट मिसाइल रक्षा प्रणाली मांगी है।

वेस्ट बैंक में फैली अशांति और शरणार्थियों के आने से अम्मान के लिए बड़ा ख़तरा है।

जॉर्डन ने गाजा में अपनी कार्रवाई का विरोध करते हुए इजराइल से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है।

पश्चिमी तट:

पश्चिमी तट (वेस्‍ट बैंक) में फ़िलिस्तीन प्राधिकरण इज़रायल को दूर रखते हुए अपनी सत्ता पर अपनी जोखिम भरी पकड़ बनाए रखने के कार्य और इज़रायल द्वारा गाजा हमलों में हताहतों की संख्या से क्रोधित लोगों और अपनी शक्तिहीनता को देखकर अपनी सत्ता के लिए एक और चुनौती के बीच फंस गया है।

यदि आतंकवादी हमलों से भड़का विरोध-प्रदर्शन व्यापक हो जाता है, तो इससे संघर्ष में इज़रायल के संसाधनों पर दबाव पड़ेगा और पश्चिमी तट के लोगों और उसके नेतृत्व पर इसका दंडात्मक प्रभाव पड़ेगा।

सीरिया:

इज़रायल के हवाई हमलों का शिकार रहा सीरिया गाजा में इजरायल की हार से राहत की उम्‍मीद कर सकता है।

लेकिन इसे देश के ऐसे समूहों से भी जूझना होगा जो इसमें शामिल हो रहे हैं और इसे असुरक्षित बना रहे हैं।

लेबनान:

लेबनान को हिज़्बुल्ला के माध्यम से इज़रायल के साथ संघर्ष में शामिल होने की संभावना का सामना करना पड़ रहा है, जो शिया-बहुल क्षेत्रों, विशेष रूप से दक्षिणी सीमा के व्यापक हिस्से को नियंत्रित करता है।

पहले से ही, हिज़्बुल्ला और इज़रायल लेबनान की दक्षिणी सीमा पर झड़पों में उलझे हुए हैं। हिज़्बुल्ला के नेता हसन नसरल्ला ने अपने अनुसार सही समय पर लड़ाई बढ़ाने की धमकी दी है।

अमेरिका ने भूमध्य सागर में एक नौसैनिक बेड़ा भेजा, जो इज़रायल के समर्थन में हिज़्बुल्ला के ठिकानों पर बमबारी कर सकता है और उसे सीधे संघर्ष में शामिल कर सकता है। हिज़्बुल्ला का एक बड़ा हमला हुआ तो इज़रायल को दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगी।

एक खंडित लेबनान, जो पहले से ही गहरे आर्थिक संकट में है, और अधिक वित्तीय रसातल में डूब जाएगा।

भारत:

भारत बीच में फंस गया है। भले ही वह खुद को विकासशील और पिछड़े देशों की आवाज और विकासशील देशों के लिए नेतृत्व के एक नए केंद्र के रूप में पेश करता है, वह खुद को फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले बहुमत के खिलाफ खड़ा पाता है।

चीन की स्थिति दक्षिण के साथ अधिक निकटता से जुड़ी हुई है।

खाड़ी में एक बड़े प्रवासी और क्षेत्र से ऊर्जा और पूंजी पर निर्भरता के साथ, नई दिल्ली को खाड़ी देशों को शांत करना होगा; भले ही वह आतंकवाद के प्रति साझा घृणा और रक्षा संबंधों के कारण इजरायल की ओर झुक रहा हो।

अगर क्षेत्र में स्थिति और बिगड़ती है और इज़राइल अलग-थलग पड़ जाता है तो जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर खतरे में पड़ सकता है।

भारत को कुछ हद तक स्वतंत्रता मिलती है क्योंकि रूस के साथ उसके तेल सौदे से खाड़ी पर निर्भरता कम हो हुई है। (भारत अब अपना 40 प्रतिशत तेल रूस से आयात करता है।)

–आईएएनएस

एकेजे

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