क्या संतान पैदा करने के लिए किसी कैदी को पैरोल दी जा सकती है या नहीं ? सुप्रीम कोर्ट करेगा कई मुद्दों पर विचार

25 Jul, 2022
Deepa Rawat
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15 दिनों की पैरोल

राजस्थान हाईकोर्ट में एक हैरान कर देने वाला मामला सामनेे आया है. एक कैदी को संतान पैदा करने के लिए 15 दिनों की पैरोल देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर अदालत सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई भी हो सकती है.

नई दिल्लीः क्या संतान पैदा करने के लिए कैदी को पैरोल दी जा सकती है? दरअसल अभी सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करेगा. राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा एक कैदी को संतान पैदा करने के लिए 15 दिनों की पैरोल देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिस पर शीर्ष अदालत सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट

दरअसल, इस साल अप्रैल में एक कैदी की पत्नी ने अपने ‘संतान पैदा करने के अधिकार’ का जिक्र करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ से पति की रिहाई की मांग की थी. उच्च न्यायालय के जस्टिस संदीप मेहता और फरजंद अली ने कहा कि पति के जेल में रहने के कारण कैदी की पत्नी की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतें प्रभावित हुई हैं. इसी आधार पर अदालत ने उम्रकैद की सजा काट रहे 34 साल के नंदलाल की 15 दिनों की पैरोल मंजूर की थी.

उच्च न्यायाल जस्टिस संदीप मेहता

भीलवाड़ा अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद नंदलाल अजमेर सेंट्रल जेल में बंद है. उसकी पत्नी ने जिला कलेक्टर और पैरोल कमेटी के चेयरमैन से अपील कि कि वह कैदी की वैध पत्नी है और उनकी कोई संतान नहीं है. इसलिए उसके पति को पैरोल पर जेल से बाहर आने देना चाहिए, जिससे वह संतान सुख प्राप्त कर सके. महिला ने इसके लिए अपने पति के जेल में रहने के दौरान ‘अच्छे व्यवहार’ का भी हवाला दिया था. उसका आवेदन कलेक्टर ऑफिस में पेंडिंग था. मामले की जल्द सुनवाई के लिए वह राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ पहुंच गई.

राजस्थान हाईकोर्ट

अदालत ने कैदी को संतान पैदा करने के लिए पैरोल देते हुए अपने फैसले में कहा….

15 दिनों की पैरोल


महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने अपने फैसले में कहा कि कैदी की पत्नी बच्चे के अधिकार से वंचित रही है, जबकि न तो उसने कोई अपराध किया है और न ही उसे कोई सजा मिली है. अदालत ने कहा, ‘वंश संरक्षण के उद्देश्य से बच्चा पैदा करने को धार्मिक ग्रंथों, भारतीय संस्कृति और अलग.अलग न्यायिक फैसलों में भी माना गया है. बच्चा होने से कैदी पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. पैरोल देने का मकसद यह भी है कि अपनी रिहाई के बाद कैदी शांतिपूर्ण तरीके से समाज की मुख्यधारा में शामिल हो पाएगा.

अदालत ने किया हिंदू धर्म के 16 संस्कारों का जिक्र

हिंदू धर्म के 16 संस्कार

अदालत ने हिंदू धर्म के 16 संस्कारों का जिक्र किया, जिसमें गर्भधारण को भी एक संस्कार बताया गया है. अदालत ने कहा, ‘हिंदू दर्शन में चार पुरुषार्थ हैं. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. जब एक कैदी जेल में होता है तो वह इन पुरुषार्थों से वंचित हो जाता है. इनमें से तीन पुरुषार्थ धर्म, अर्थ और मोक्ष अकेले हासिल किये जा सकते हैं, लेकिन काम ऐसा हिस्सा है जो शादी होने के बाद पति-पत्नी पर निर्भर करता है. ऐसी स्थिति में कैदी की निर्दोष पत्नी इससे वंचित होती है. शादीशुदा महिला मां बनना चाहती है, तो उसकी यह इच्छा पूरी करने में स्टेट की जिम्मेदारी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है.

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