भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को, नेहरू जी से ज्यादा मत प्राप्त हुए थे। देश की जनता सरदार वल्लभ भाई को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी लेकिन महात्मा गाँधी ने चालाकी से नेहरू जी को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया था।
नई दिल्ली: भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को प्रयागराज (इलाहाबाद) के एक प्रतिष्ठित कश्मीरी परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम पंडित मोतीलाल नेहरू था और उनकी माता का नाम स्वरूप रानी नेहरू था। नेहरु ने इलाहाबाद में अपने पैतृक निवास आनंद भवन में सुख, ऐश्वर्य से भरा बचपन बिताया और 16 वर्ष तक आरम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। इसके बाद, जवाहरलाल ने स्नातक और कानून की पढ़ाई इंग्लैंड से पूरी की और बैरिस्टर बन कर भारत लौटे। पंडित जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौटते ही कांग्रेस पार्टी से जुड़कर देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने लगे। पंडित नेहरू ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए सभी प्रमुख आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने वर्ष 1920 से लेकर 1945 के दौरान करीब 9 बार अलग-अलग अवधि में कुल 9 साल जेल में बिताए। 1947 में वह भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
नेहरु का प्रारंभिक जीवन
जवाहरलाल नेहरू के पिता पंडित मोतीलाल नेहरू एक सुविख्यात वकील थे और कानून की गहरी जानकारी के कारण भारत भर में प्रसिद्ध थे।अपनी योग्यता से पंडित मोतीलाल नेहरू ने भरपूर समृद्धि हासिल की थी। जवाहरलाल की मां स्वरूप रानी नेहरू मूलरूप से लाहौर के एक प्रसिद्ध कश्मीरी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। जवाहरलाल नेहरू की दो बहनें थीं- विजय लक्ष्मी और कृष्णा। जवाहरलाल का पालन-पोषण इलाहाबाद के विख्यात आनंंद भवन में सुख- सुविधा परिपूर्ण वातावरण में हुआ। जवाहरलाल को वर्ष 1896 में इलाहाबाद के सेंट मेरी कॉन्वेंट स्कूल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने भेजा गया लेकिन 6 माह बाद ही उन्हें स्कूल से हटा लिया गया और 16 वर्ष तक घर पर ही शिक्षा प्राप्त की। जवाहरलाल का दाखिला मई 1905 में इंग्लैंड के ‘हैरो काॅलेज’ में कराया गया। अध्ययन के लिए वहां का वातावरण उनके बिलकुल अनुकूल था। 1907 में उन्होंने ‘कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय’ के ट्रिनिटी काॅलिज में प्रवेश लिया। वहां से जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान एवं रसायन शास्त्र विषयों के साथ स्नातक किया। काॅलेज की शिक्षा समाप्त करके जवाहरलाल नेहरू ने मिडिल टेम्पल इन्स ऑफ कोर्ट स्कूल ऑफ लॉ में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।
शुरुआती दिनों में वकालत की
जवाहरलाल नेहरू ने बैरिस्टर बनने के बाद इलाहाबाद वापस आकर अपने पिता के साथ वकालत शुरू कर दी। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यों के लिए समय देना शुरू कर दिया। 1912 में वे बाँकीपुर में कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में सम्मिलित हुए।जवाहरलाल नेहरू का विवाह 26 वर्ष की आयु में कमला नेहरु के साथ 8 जून 1916 को दिल्ली की हक्सर हवेली में हुआ। उनके घर 19 नवम्बर 1917 को एक पुत्नारी का जन्म हुआ, जिसका नाम इंदिरा प्रियदर्शनी रखा गया। 1922 में एक पुत्र भी हुआ, परन्तु दुर्भाग्यवश वह जीवित न रह सका। जवाहरलाल एवं कमला नेहरू का शुरुआती विवाहित जीवन पारिवारिक पृष्ठभूमि में अंतर के कारण विरोधाभासों से भरा रहा।
जवाहरलाल नेहरु की राजनीतिक यात्रा
- – उन्होंने 1912 में एक प्रतिनिधि के रूप में बांकीपुर कांग्रेस में भाग लिया।
- – 1919 में वे होम रूल लीग, इलाहाबाद के सचिव बने।
- – 1916 में, वह पहली बार महात्मा गांधी से मिले , और उनसे बेहद प्रेरित हुए।
- – 1920 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया।
- – असहयोग आंदोलन (1920-22) के कारण दो बार जेल गए।
- – सितंबर 1923 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।
- – 1926 में उन्होंने इटली, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी और रूस का दौरा किया।
- – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में, उन्होंने बेल्जियम में ब्रुसेल्स में उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं की कांग्रेस में भाग लिया था।
- – 1927 में, उन्होंने मास्को में अक्टूबर समाजवादी क्रांति की दसवीं वर्षगांठ समारोह में भाग लिया।
- – 1928 में साइमन कमीशन के दौरान लखनऊ में उन पर लाठीचार्ज किया गया था।
- – उन्होंने 29 अगस्त 1928 को ऑल-पार्टी कांग्रेस में भाग लिया और भारतीय संवैधानिक सुधार पर नेहरू रिपोर्ट के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे, जिसका नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था।
- – 1928 में उन्होंने ‘इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लीग’ की स्थापना की और इसके महासचिव बने।
- – वे 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए थे। इसी अधिवेशन में ही देश की स्वतंत्रता के लिए पूर्ण लक्ष्य को अपनाया गया था।
- – 1930-35 के दौरान, नमक सत्याग्रह और कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए अन्य आंदोलनों से संबंध होने के कारण, उन्हें कई बार कैद किया गया था।
- – 14 फरवरी 1935 को उन्होंने अल्मोड़ा जेल में अपनी ‘आत्मकथा’ पूरी की थी।
- – जेल से छूटने के बाद वह अपनी बीमार पत्नी को देखने स्विट्जरलैंड गए थे।
- – युद्ध में भारत की जबरन भागीदारी के विरोध में 31 अक्टूबर, 1940 को एक व्यक्तिगत सत्याग्रह की पेशकश करने के लिए उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया था।
- – दिसंबर 1941 में उन्हें जेल से रिहा किया गया।
- – 7 अगस्त 1942 को बंबई में ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ के अधिवेशन में पं. जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पेश किया।
- – 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में ले जाया गया। यह उनकी सबसे लंबी और आखिरी नजरबंदी थी।
- – उन्हें जनवरी 1945 में जेल से रिहा किया गया और राजद्रोह के आरोप में INA के अधिकारियों और पुरुषों के लिए कानूनी बचाव का आयोजन किया गया।
- – जुलाई, 1946 में, चौथी बार, वे कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए और फिर 1951 से 1954 तक तीन और कार्यकालों के लिए चुने गए।
- इस तरह वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। वह पहले प्रधान मंत्री थे जिन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और लाल किला (लाल किला) की प्राचीर से अपना प्रतिष्ठित भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” दिया।
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को, नेहरू जी से ज्यादा मत प्राप्त हुए थे देश की जनता सरदार वल्लभ भाई को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी लेकिन महात्मा गाँधी ने चालाकी से नेहरू जी को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 एवं 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। इस रात संसद भवन में उन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी दिया।
स्वतंत्र भारत में जवाहरलाल नेहरू का योगदान
- – उन्होंने आधुनिक मूल्यों और विचारों को प्रदान किया।
- – उन्होंने धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी दृष्टिकोण पर जोर दिया।
- – उन्होंने भारत की बुनियादी एकता पर ध्यान केंद्रित किया।
- – उन्होंने 1951 में पहली पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करके लोकतांत्रिक समाजवाद की वकालत की और भारत के औद्योगीकरण को प्रोत्साहित किया।
- – उच्च शिक्षा की स्थापना करके वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा दिया।
- – साथ ही, विभिन्न सामाजिक सुधारों की स्थापना की जैसे मुफ्त सार्वजनिक शिक्षा, भारतीय बच्चों के लिए मुफ्त भोजन, महिलाओं के लिए कानूनी अधिकार जिसमें संपत्ति विरासत में लेने की क्षमता, अपने पति को तलाक देना, जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए कानून आदि शामिल हैं।
नेहरू की विदेश नीति
नेहरू जी विदेश नीति में ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर के रास्ते पर चलने में विश्वास करते थे। उनकी विदेश नीति गुट निरपेक्षता एवं पंचशील के सिद्धांत पर आधारित थी। पड़ोसी देशों के साथ मधुर एवं मजबूत संबंध स्थापित करने की पहल की। हालांकि, पाकिस्तान और चीन के साथ अनेक प्रयासों के बाद भी वे रिश्तों में मधुरता नहीं ला पाए। उन्होंने ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ को बढ़ावा देते हुए चीन के साथ मित्रता का प्रयास किया, लेकिन 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। चीन के आक्रमण से जवाहरलाल काे बड़ा सदमा लगा। कहा जाता है कि यही जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु की वजह भी बनी। जवाहरलाल नेहरू का 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकें
जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकें – जवाहरलाल नेहरू के भाषणों और विचारों के संकलन पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वयं लिखित पुस्तकें इस प्रकार हैं।
1.पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी को लिखे पत्रों का संकलन लेटर्स फ्रॉम अ फादर टु हिज डॉटर।
2.आत्मकथा मेरी कहानी ( एन ऑटोबायोग्राफी)
3.विश्व इतिहास की झलकियां (ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री) भारत एक खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया)
4.भारत एक खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया)
जवाहरलाल नेहरू की विरासत –
वह बहुलवाद, समाजवाद, उदारवाद और लोकतंत्र में विश्वास करते थे। उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था और इसलिए, उनके जन्मदिन को भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और भारत के पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम आदि सहित भारत के शीर्ष स्तरीय संस्थानों की कल्पना करके भारत की शिक्षा का समर्थन किया और एक रास्ता तैयार किया।
जवाहरलाल नेहरु को मिला सम्मान
1955 में नेहरु जी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजा गया।
जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु –
27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। दिल्ली में यमुना नदी के तट पर शांतिवन में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
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