आज हमारें देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह जी की जयंती है जैसे की आप सभी को पता है की भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए कई वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था. स्वतंत्रता संग्राम में कई भारतीय वीर सपूत शामिल हुए। इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह भी थे, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजों से जमकर टक्कर ली I
Bhagat Singh Jayanti 2023: भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए कई वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम में कई भारतीय वीर सपूत शामिल हुए। कुछ ने बापू के बताए मार्ग को अपनाते हुए अहिंसा के पथ पर आजादी की राह चुनी तो कुछ अंग्रेजों से आंख पर आंख मिलाकर उनके खिलाफ खड़े हो गए।
इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह थे, जिनका जन्म 28 सितंबर 1907 में हुआ था। भगत सिंह ने देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर आजादी की मांग की आवाज को हर देशवासी के कान तक पहुंचा दिया। जेल में अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़ना झेलने के बाद भी भगत सिंह ने आजादी की मांग को जारी रखा। इसीलिए भगत सिंह के इस योगदान को आज हम उनकी जयंती पर याद कर रहे हैं. भगत सिंह को लिखने का बहुत शौक था, जेल में भी भगत सिंह लिखते थे और उनकी डायरी काफी चर्चित थी. भगत सिंह ने हंसते-हंसते अपने प्राण अपने देश के लिए न्योछावर कर दिए.
भगत सिंह कितने साल जेल में थे?
भगत सिंह को 1929 में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 1931 में फांसी दी गई थी। इस बीच, उन्होंने लगभग 2 साल जेल में बिताए। भगत सिंह को 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था। उन्हें 23 मार्च, 1931 को लाहौर षड़यंत्र केस में दोषी ठहराया गया और उन्हें फांसी दी गई। इस प्रकार, भगत सिंह ने लगभग 2 साल जेल में बिताए। भगत सिंह को भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है। उनके बलिदान और साहस ने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया। भगत सिंह के विचार और आदर्श आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।
भगत सिंह फांसी में चढ़ते समय क्या कहा था
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च, 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। फांसी के दिन, भगत सिंह ने अपने अंतिम क्षणों में अपने साथियों को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में, उन्होंने कहा कि वे अपने देश के लिए मरने के लिए तैयार हैं और उन्हें कोई पछतावा नहीं है।“मैं दुनिया में न्याय और समानता देखना चाहता हूं,”“मैं भारत को एक स्वतंत्र और प्रगतिशील राष्ट्र बनाना चाहता हूं।” भगत सिंह ने फांसी के फंदे पर चढ़ने से पहले एक नारा भी लगाया था। यह नारा था “इंकलाब जिंदाबाद”। यह नारा आज भी भारत में स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक है।