शंकरसिंह वाघेला 40 सालों से भी ज्यादा से राजनीति में हैं। कभी उनको नरेंद्र मोदी का गुरु माना जाता था। शंकरसिंह वाघेला अकेले ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के अध्यक्ष रह चुके हैं।
नई दिल्ली: गुजरात में एक बार फिर बीजेपी को बड़ी जीत हाथ लगी है। जी हां, गुजरात विधानसभा का चुनाव भाजपा के नाम हो गया है। गुजरात में एक बार फिर भूपेंद्र पटेल गुजरात के सीएम बने जा चुके हैं। आज हम आपको अब तक के रह चुके मुख्यमंत्री के बारे में बताएंगे।
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1960 – 1963 तक जीवराज नारयण मेहता राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे
गुजरात गांधीजी का घर। प्रधानमंत्री मोदी का घर। 12 साल तक मोदी जी यहां के मुख्यमंत्री रहे। 1 मई 1960 को बाम्बे से काटकर बनाया गया था गुजरात को। बाद में देश के सबसे विकसित राज्यों में से एक बना। जब पहला आम चुनाव हुआ तो हर जगह के तरह काँग्रेस यहाँ भी जीत गई और पहले मुख्यमंत्री बने जीवराज नारयण मेहता। जीवराज नारयण मेहता बाम्बे के अमरेली में 29 अगस्त, 1887 को एक गरीब परिवार में पैदा हुए। बचपन से ही जीव पढ़ने में होशियार थे। पर हमेशा के तरह यहाँ भी गरीबी पढ़ाई को आइना दिखा रही थी। जीव की लगनशीलता को उनका दादी ने समझ लिया था क्योंकि बिजली ना होने से वो घर के बाहर लगे स्ट्रीट लाइट में ही पढ़ने लगते थे। किसी तरह से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा हासिल किया।
कौन थे जीवराज नारयण मेहता?
मेहता शुरू से डॉक्टर बनना चाहते थे। इसकी पढ़ाई में तो आज भी बहुत पैसे लगते हैं लेकिन कहते हैं ना कि मेहनत आँख बंद करके ही की जानी चाहिए, फिर कहीं जाकर कामयाबी मिलती है। सेठ कपोल बोर्डिंग ट्रस्ट ने उनकी पढ़ाई के खर्च की जिम्मेदारी उठा ली। डॉ. मेहता हर साल पढ़ाई में फर्स्ट आते रहे। मेडिकल में ग्रेजुएशन करने के बाद वो मास्टर्स के लिए लंदन चले गए। लंदन में 1909-15 तक रहे। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वापस भारत आए तो उस वक्त यहाँ आजादी का आंदोलन सर चढ़ कर बोल रहा था। वो भी आंदोलन में कूद पड़े लेकिन अपनी डॉक्टरी नहीं छोड़ी। गांधीजी के संपर्क में आए और उनके पर्सनल डॉक्टर बन गए। उनके साथ मिलकर देश की सेवा करने लगे। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। आजदी के बाद डॉ मेहता सरकार के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 1 मई 1960 को जब गुजरात अस्तित्व में आया तो डॉ मेहता राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
1963 -1965 बलवंतराय मेहता बने गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री
बलवंतराय मेहता जून 1963 से लेकर सितंबर 1965 तक वह गुजरात के सीएम थे। बलवंतराय मेहता (1900 -1965) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनीतिज्ञ थे। जो क्षेत्र गुजरात से भारत की संविधान सभा के लिए चुने गये थे। स्वतंत्रता के बाद वह गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री बने। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में उनके योगदान के लिए उन्हें पंचायती राज का वास्तुकार माना जाता है।
बलवंतराय मेहता के बारे में
बलवंतराय गोपालजी मेहता का जन्म 19 फरवरी 1900 को भावनगर में एक माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होनें बीए तक पढ़ाई की लेकिन विदेशी सरकार से डिग्री लेने से मना कर दिया। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी गए। यह वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन का राष्ट्रीय आंदोलन में भी हिस्सा लिया। उन्होनें 1921 में भावनगर में प्रजा मण्डल की स्थापना की। जो स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेता है। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन में 1930 से 1932 तक रहे। इसके बाद यह बारडोली सत्याग्रह का भी हिस्सा बने। इसके बाद 1942 में उन्हें भारत जोड़ो आंदोलन के कारण तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी। वह अंग्रेजी राज के दौरान सात वर्षों तक कारावास में कैद थे। बाद में महात्मा गांधी ने उन्हें सुझाव दिया की वह कांग्रेस कार्यकारी समिति से जुड़ जाए। तब जवाहरलाल नेहरू उसके अध्यक्ष बने थे। वे इसके बाद वर्ष 1949 में महासचिव के पद हेतु चुनाव लड़े थे, और उसके बाद वह 1952, 1957 के संसदीय चुनावों में भावनगर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा। 19 सितम्बर 1965 को भारत- पाक के युद्ध के दौरान वह मीठापुर से कच्छ तक जा रहे थे। रास्ते में पाकिस्तानी वायु सेना ने उनके विमान पर हमला कर दिया। जिसमें मेहता जी के साथ उनकी पत्नी, तीन कार्यकर्ता, एक पत्रकार और दो विमान चालक की मौत हो गई।
1965-1971 हितेन्द्र कन्हैयालाल देसाई गुजरात के तीसरे मुख्यमंत्री बने
1965 से 1971 तक कांग्रेस के नेता हितेन्द्र कन्हैयालाल देसाई गुजरात के तीसरे मुख्यमंत्री बने। 9 अगस्त, 1915 के रोज सूरत में जन्मे हितेन्द्र देसाई की परवरिश आजादी आंदोलन की छांव में हुई। उनके पिता कांग्रेस के नेता हुआ करते थे। 12 मार्च,1930 के दिन गांधी जी से दांडी के लिए निकल पड़े। उनके साथ 77 और सत्याग्रही थे। आन्दोलनकारियों की इस टोली को हर दिन 10 मील की पैदल यात्रा करते हुए 6 अप्रैल को सूरत जिले के दांडी गांव पहुंचना था। अप्रैल की पहली तारीख को गांधी सूरत पहुंचे। यहां उनका भव्य स्वागत हुआ। ‘सूरत जिला कांग्रेस कमिटी’ के अध्यक्ष कानजी भाई देसाई का 15 वर्ष का लड़का भी था। सविनय अवज्ञा आंदोलन का ऐलान होने के साथ ही उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। यह बतौर सत्याग्रही उसकी पहली जेल यात्रा थी। इस लड़के का नाम था- हितेन्द्र कन्हैयालाल देसाई। उसे दांडी मार्च के 35 साल बाद बतौर मुख्यमंत्री सूबे की कमान संभालनी थी।
1930 के सविनय अवज्ञा के बाद हितेन्द्र देसाई की पढ़ाई फिर से शुरू हुई। 1933 में उन्होंने सूरत से मैट्रिक पास की। आगे की पढ़ाई के लिए बॉम्बे यूनिवर्सिटी भेजा गया। यहां से उन्होंने अर्थशास्त्र में बी. ए. किया। इसके बाद उस दौर की रवायत के मुताबिक़ उन्होंने कानून की पढ़ाई में दाखिला ले लिया। 1937 में हितेन्द्र बॉम्बे यूनिवर्सिटी से वकील बनकर निकले। वह बॉम्बे हाईकोर्ट में वकील हो गए। वकालत चल निकली। इधर कांग्रेस में भी सक्रियता बनी रही।
1972-1973 तक घनश्यामभाई ओझा गुजरात के चौथे मुख्यमंत्री बने
1972 से 1973 कांग्रेस के घनश्यामभाई ओझा गुजरात के चौथे मुख्यमंत्री बने। 25 अक्टूबर, 1911 को पैदा हुए घनश्याम ओझा के पिता छोटालाल ओझा भावनगर के बड़े वकील हुआ करते थे। घनश्याम भी वकालत की पढ़ाई के बाद उनके साथ ही जुड़ गए। साल 1941 में सरदार पटेल भावनगर आए हुए थे। सरदार पटेल और छोटालाल के करीबी संबंध हुआ करते थे। ऐसे में वह ओझा परिवार से मिलने उनके घर गए। यहां सरदार पटेल ने घनश्याम ओझा से कहा कि- “उनके जैसे पढ़े-लिखे युवा को देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में ज़रूर हिस्सा लेना चाहिए।” इसके बाद वह घनश्याम के पिता से मुखातिब हुए और बोले- “छोटाभाई ये लड़का आप मुझे दे दीजिए।” छोटालाल ओझा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस तरह बतौर राजनीतिक कार्यकर्ता घनशयाम ओझा का सफर शुरू हुआ।
1973-1974 चिमनभाई पटेल गुजरात के पाचवें मुख्यमंत्री बने
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता चिमनभाई पटेल 1973 से 1974 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने। चिमनभाई पटेल भारत के एक राजनेता थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता दल के साथ जुड़े थे। 04 मार्च, 1990 से 17 फरवरी, 1994 तक एक बार फिर चिमनभाई पटेल एक बार फिर गुजरात के सीएम बने।
1975-1976 तक बाबूभाई पटेल गुजरात के छठे मुख्यमंत्री बने
बाबूभाई पटेल का जन्म 9 फरवरी,1911 को बम्बई में हुआ था। वह जनता पार्टी को के राजनीतिज्ञों में से एक थे। वह गुजरात के भूतपूर्व छठे मुख्यमंत्री थे। बाबूभाई पटेल दो बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। दूसरी बार वह 11 अप्रैल, 1977 से 17 फरवरी, 1980 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। उनका निधन 19 दिसंबर, 2002 को गुजरात में हो गया था।
1976-1977 तक माधवसिंह सोलंकी गुजरात के सातवें मुख्यमंत्री बने
माधवसिंह सोलंकी 1976 से 1977 तक गुजरात के सातवें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य किया। वह कांग्रेस के ऐसे नेता थे, जो राज्य के 4 बार मुख्यमंत्री बने। वह 1980 से 1985 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वह 11 मार्च,1985 से 06 जुलाई, 1985 तक एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बने। 10 दिसंबर, 1989 से 04 मार्च, 1990 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने। उनका जन्म कोली परिवार में हुआ था। वह 30 जुलाई 1927 को जन्मे थे। उन्होंने ‘खाम’ की रणनीति बना कर सियासत की नई बिसात बिछाई और भाजपा का गढ़ रहे गुजरात में अपनी पार्टी कांग्रेस को सत्ता में लाते रहे। माधव सिंह सोलंकी ने न सिर्फ सूबे की सियासत में अपनी अमिट छाप छोड़ी, बल्कि भारत सरकार में विदेश मंत्री बनकर अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम कमाया।
1985 – 1989 तक अमरसिहं चौधरी गुजरात के आठवें मुख्यमंत्री बने
अमरसिंह चौधरी 06 जुलाई, 1985 से 09 दिसंबर, 1989 तक गुजरात के आठवें मुख्यमंत्री बने। अमर सिंह का जन्म 31 जुलाई, 1941 को सूरत में हुआ था। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे। 1972 के लोकसभा चुनाव में अमरसिंह चौधरी को सूरत की व्यारा सुरक्षित सीट से कांग्रेस का टिकट मिला था। अमरसिंह चौधरी को पहली दफा विधायक बनने के साथ ही मंत्री की कुर्सी मिल गई। उन्हें इंजीनियर होने के कारण बांध कार्य मंत्रालय का राज्य मंत्री बनाया गया। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले अमरसिंह चौधरी पांच अलग-अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। सत्ता में आते ही अमरसिंह चौधरी ने आरक्षण में हुई 18 फीसदी बढ़ोतरी को स्थगित कर दिया था। नर्मदा बांध परियोजना के काम को ठीक से चलाने के लिए नर्मदा कॉर्पोरेशन की स्थापना की। उनके कार्यकाल के अंत तक आधे गुजरात को सिंचाई के लिए नहर का पानी मिलने लग गया था। चार साल के कार्यकाल के दरम्यान तीन साल तक गुजरात सूखे की चपेट में था। राजकोट में बिगड़ती स्थिति पर काबू पाने के लिए उन्होंने गांधीनगर से राजकोट तक ट्रेन के मार्फत पानी पहुंचाया। “काम के बदले अनाज योजना” शुरू की। 1985 और 1986 में अहमदाबाद में जगन्नाथ यात्रा के दौरान भयंकर दंगे हुए। ऐसे में उन्होंने 1987 में यात्रा पर रोक लगाने की बजाय उसकी इजाजत दी। भारी पुलिस बंदोबस्त में बिना किसी हिंसा के यात्रा हुई। अमरसिंह चौधरी ने ‘वृद्धावस्था पेंशन योजना’ की शुरुआत की। वह गुजरात के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री थे। 15 अगस्त,2004 के दिन वह इस दुनिया से विदा हो गए।
1994 -1995 तक छबीलदास मेहता के नौवें मुख्यमंत्री बने
17 फरवरी, 1994 से 14 मार्च, 1995 तक गुजरात छबीलदास मेहता के नौवें मुख्यमंत्री बने। भावनगर जिले में जमीन जहां समुद्र से मिलती है, वहां एक क़स्बा है, महुवा। 4 नवंबर, 1925 को छबीलदास मेहता इसी कस्बे में पैदा हुए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय उनकी उम्र थी मात्र 17 साल। उन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई छोड़ी और इस आंदोलन में कूद गए। जेल से निकले और फिर से पढ़ाई शुरू की।
1952 में देश आजाद होने के पांच साल बाद पहला चुनाव होने जा रहा था। जयप्रकाश नारायण और जे. बी. कृपलानी ने जवाहरलाल नेहरु के खिलाफ बगावत करके नई पार्टी बनाई ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’। छबीलदास आजादी के आंदोलन के दौरान ही समाजवादियों के प्रभाव में आ चुके थे। उन्होंने इस नई पार्टी से स्वयं को जोड़ लिया। 1956 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी से अलग गुजराती भाषा वाले नए राज्य की स्थापना की मांग होने लगी। इसे नाम दिया गया ‘महागुजरात आंदोलन’। छबीलदास मेहता इस आंदोलन का हिस्सा बन गए। 1962 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी से अलग नए गुजरात राज्य का गठन हुआ। 1962 में पहले विधानसभा की घोषणा हुई। छबीलदास सोशलिस्ट पार्टी छोड़कर फिर से कांग्रेस की सरपरस्ती में आ गए और महुवा से विधायक बने। मंत्री बनने का पहला मौका आया। 1973 मनें चिमनभाई पटेल ने उन्हें अपने पहले कार्यकाल के दौरान मंत्रिमंडल में जगह दी और पी.डबल्यू.डी. मंत्रालय सौंपा।
सन् 1974 में नव निर्माण आंदोलन के चलते चिमनभाई पटेल को इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद वह कांग्रेस से अलग हो गए और ‘किसान मजदूर लोकपक्ष’ नाम से नई पार्टी बनाई। छबीलदास मेहता कांग्रेस में बने रहे। 1980 के विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काट लिया गया। इसके बाद वह कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में चले गए। वहां चिमनभाई पहले से मौजूद थे। 1985 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लड़ा जनता पार्टी की टिकट पर। करीबी मुकाबले में कांग्रेस के वजुभाई जानी से 1187 वोट से चुनाव हार गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल की टिकट पर फिर से महुवा सीट से नामांकन दाखिल किया और पिछली हार का बदला लेने में कामयाब रहे। इस चुनाव में उन्होंने विजुभाई के 10570 वोट के मुकाबले 40445 वोट हासिल किए। चिमनभाई के साथ करीबी काम आई। नए मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बनाए गए। जनता दल (गुजरात) के कांग्रेस में विलय के साथ फिर से कांग्रेस में लौट आए। सन् 1995 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और छबीलदास मेहता को संगठन में किनारे लगाया जाना शुरू हो गया था। 1998 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद तो लगभग अप्रासंगिक हो गए। 2001 में कांग्रेस छोड़कर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थामा। 2002 का चुनाव लड़ा और फिर से हार गए। इसके बाद सियासत से किनारा कर लिया। 2008 की नवंबर को अहमदाबाद गुजरात में उन्होंने अंतिम श्वांस ली।
1995 में केशुभाई पटेल बने गुजरात के मुख्यमंत्री
14 मार्च, 1995 से 21 अक्तूबर, 1995 तक केशुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बने। 1960 के दशक में उन्होंने जनसंघ के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। वह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 1975 में, जनसंघ-कांग्रेस (ओ) गठबंधन गुजरात में सत्ता में आई। आपातकाल के बाद, 1977 में वह राजकोट निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए थे। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और बाबूभाई पटेल की जनता मोर्चा सरकार में 1978 से 1980 तक कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया। 1979 में मच्छू बांध दुर्घटना जिसने मोरबी को तबाह कर दिया था, के बाद उन्हें राहत कार्य में शामिल किया गया था। 1978 और 1995 के बीच वे कलावाड़, गोंडल और विशावादार से विधानसभा चुनाव जीते। 1980 में, जब जनसंघ पार्टी को भंग कर दिया गया तो वह नवनिर्मित भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ आयोजक बने। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ चुनाव अभियान का आयोजन किया और उनके नेतृत्व में 1995 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत हासिल हुई।
14 मार्च 1995 को वह गुजरात के मुख्यमंत्री बने परन्तु सात महीने बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके सहयोगी शंकरसिंह वघेला ने उनके खिलाफ विद्रोह किया और सुरेश मेहता उन्हें सर्वसम्मति मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहे। बीजेपी को विभाजित हुआ और वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) का गठन किया था, और कांग्रेस (आई) के समर्थन के साथ अक्टूबर 1996 में वह मुख्यमंत्री बने। 1998 में विधानसभा को भंग कर दिया गया क्योंकि कांग्रेस (आई) ने राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया था। 1998 के विधानसभा चुनावों में केशुभाई पटेल की अगुवाई में बीजेपी पुनः सत्ता में लौट आई और वह फिर 4 मार्च 1998 को गुजरात के मुख्यमंत्री बने।
1995- 1997 तक सुरेश मेहता गुजरात के मुख्यमंत्री बने
21 अक्तूबर, 1995 से 19 सितंबर, 1996 तक सुरेश मेहता गुजरात के मुख्यमंत्री बने। वे कच्छ से ताल्लुक रखते हैं तथा 2007 तक (भाजपा) के राजनेता रहे। बाद में वे गुजरात परिवर्तन पार्टी शामिल हुए। उन्होंने फरवरी, 2014 में गुजरात परिवर्तन पार्टी का भाजपा में विलय का विरोध किया और पार्टी छोड़ दी।
1996-1997 तक शंकरसिंह वाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री बने
23 अक्टूबर, 1996 से 27 अक्तूबर, 1997 तक गुजरात के शंकरसिंह वाघेला मुख्यमंत्री बने। शंकरसिंह वाघेला का जन्म 21 जुलाई, 1940 में गांधीनगर जिले के वासन के एक राजदूत परिवार में हुआ था। उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ आर्ट्स काी पढ़ाई की है। शंकरसिंह वाघेला ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत जनसंघ से की थी, बाद में वे जनता पार्टी में चले गए। जनता पार्टी के विभाजन के बाद वाघेला भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता बने। 1996 में वह भाजपा से भी अलग हो गए और राष्ट्रीय जनता पार्टी की स्थापना की। अक्टूबर 1996 से अक्टूबर 1997 तक वह गुजरात के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। बाद में उनकी पार्टी का (कांग्रेस) में विलय हो गया। 21, जुलाई, 2017 को उन्होंने फिर से कांग्रेस छोड़ दी और विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफा दे दिया। शंकरसिंह वाघेला ने कुल छह बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था और तीन बार सांसद बने थे। वह साल 1977 में पहली बार सांसद बने थे। 1984 से 1989 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। 2004 से 2009 के बीच यूपीए की पहली सरकार में वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। वाघेला को गुजरात में लोग ‘बापू’ भी कहते हैं।
शंकरसिंह वाघेला 40 सालों से भी ज्यादा से राजनीति में हैं। कभी उनको नरेंद्र मोदी का गुरु माना जाता था। शंकरसिंह वाघेला अकेले ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के अध्यक्ष रह चुके हैं। जनसंघ, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, जनता पार्टी बीजेपी, उनकी अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी हो या फिर कांग्रेस, वाघेला ने हमेशा अपनी पार्टी और सांगठनिक ढांचे को दरकिनार कर फ़ैसले लिए हैं। शंकरसिंह वाघेला बाद में कांग्रेस के समर्थन से गुजरात में मुख्यमंत्री भी बन गए थे। बाद में उनकी राष्ट्रीय जनता पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य भी रह चुके हैं। 1995 से पहले शंकरसिंह वाघेला ने बीजेपी के लिए गुजरात में जी-तोड़ मेहनत की थी। गुजरात भारतमें पहला ऐसा राज्य बना, जहां बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी। लेकिन जब बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी जगह केशुभाई पटेलको सीएम पद की कुर्सी सौंप दी तो यहीं से वाघेला और बीजेपी के बीच दरार की शुरुआत हो गई।
1997- 1998 तक दिलीपभाई रमणभाई पारिख गुजरात के मुख्यमंत्री बने
28 अक्तूबर, 1997 से 04 मार्च, 1998 तक दिलीपभाई रमणभाई पारिख गुजरात के मुख्यमंत्री बने। दिलीपभाई रमणभाई पारिख का जन्म 14 फरवरी 1937 को हुआ था। वह भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उनकी मृत्यु 25 अक्टूबर, 2019 को हुई थी। दिलीपभाई रमणभाई पारिख राज्य के 13वें मुख्यमंत्री रहे। उस वक्त वह शंकरसिंंह वाघेला द्वारा गठित राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) के साथ थे, जो भाजपा से अलग होकर बनाई गई थी। उनकी सरकार को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था। सन् 1990 के दशक के मध्य में दिलीपभाई रमणभाई पारिख ने बतौर भाजपा विधायक अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की थी। वह एक उद्योगपति थे और गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष भी रह चुके थे।
शंकरसिंह वाघेला 1996 में विद्रोह कर भाजपा से अलग हो गये थे और दिलीपभाई रमणभाई पारिख ने क्षेत्रीय नेता से हाथ मिला लिया तथा उनकी पार्टी आरजेपी में शामिल हो गये। इसके बाद शंकरसिंह वाघेला कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। एक साल बाद जब मतभेदों के कारण कांग्रेस ने समर्थन वापस लेने की बात कही, तब शंकरसिंह वाघेला पीछे हट गये। समझौते के फॉर्मूले के तहत शंकरसिंह वाघेला के विश्वस्त दिलीपभाई रमणभाई पारिख ने अक्टूबर, 1997 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मार्च 1998 तक वह मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद भाजपा विधानसभा चुनाव जीत कर वापस सत्ता में आयी।
2001- 2014 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने
2001 से लेकर 2014 तक पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। नरेंद्र दामोदरदास मोदी भारत के 14वें प्रधान मंत्री हैं, जिन्होंने 2014 में और फिर 2019 में भारतीय जनता पार्टी की प्रभावशाली जीत का नेतृत्व किया। मोदी के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि वह पहली बार विधायक के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसी तरह वह पहली बार सांसद के रूप में सीधे भारत के प्रधान मंत्री बने। 2014 में बीजेपी की बहुमत से जीत के लिये मोदी को श्रेय दिया जाता है और यह साल 1984 के बाद पहली बार हुआ। मोदी का जन्म वडनगर में एक गुजराती परिवार में हुआ था, बचपन में वो चाय बेचने में अपने पिता की मदद करते थे और बाद में खुद का चाय स्टॉल भी चलाया। मोदी 8 साल की उम्र में आरएसएस के संपर्क में आए और यहां से संगठन के साथ एक लंबा साथ शुरू हुआ। वो साल 1985 में बीजेपी में शामिल हो गए। आरएसएस के साथ लंबे समय तक रहने के बाद, भारतीय जनता पार्टी में आये और फिर उनके राजनीतिक सफर में तब तीव्र गति आयी, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री चुने गये।
जब मोदी 8 साल के थे, तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए। साल 1970 में 20 साल की उम्र में, वह आरएसएस से इतना प्रभावित थे कि पूरी तरह से आरएसएस प्रचारक बन गये और 1971 में मोदी औपचारिक रूप से आरएसएस में शामिल हो गये।
पीएम मोदी का राजनीति सफर
2019
30 मई को नरेंद्र मोदी ने फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 31 मई को कैबिनेट का विस्तार किया। पीएमओ के अलावा डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रिएवांसेस एंड पेंशन, डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस और वो सभी मंत्रालय स्वयं के पास रखे, जो किसी अन्य मंत्री को आवंटित नहीं हुए। 23 मई को नरेंद्र मोदी एक बार फिर वाराणसी से सांसद चुने गये। उन्होंने लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट पर कांग्रेस के नेता अजय राय को हराया। इसी जीत के साथ उन्हें फिर से भारत का प्रधानमंत्री चुना गया।
2014
नरेंद्र मोदी 14वें और भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री के रूप में चुने गए। मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी। वह ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की आजादी के बाद पैदा हुए पहले प्रधान मंत्री बने।
2012
मोदी फिर से मणिनगर से चुने गए। इस बार उन्होंने भट्ट श्वेता संजीव को 34097 मतों से पराजित किया। उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में चौथे कार्यकाल के लिये शपथ ली। बाद में उन्होंने 2014 में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया।
2007
23 दिसंबर 2007 को, मुख्यमंत्री के रूप में मोदी का तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ और 20 दिसंबर 2012 को पूरा हुआ। इस बार फिर उन्हें मणिनगर से जीत हासिल हुई। उन्होंने कांग्रेस के दिनशा पटेल को हराया।
2002
2002 में उन्होंने मणिनगर से चुनाव लड़ा और बेहतरीन जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के ओझा यतिनभाई नरेंद्र कुमार को 38256 मतों से पराजित किया। उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी पारी के लिये भी चुना गया।
2001
केशुभाई पटेल का स्वास्थ्य खराब हुआ और बीजेपी ने उप-चुनावों में कुछ राज्य विधानसभा सीटें खो दी। बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पटेल की जगह मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी। 7 अक्टूबर 2001 को मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 24 फरवरी 2002 को, उन्होंने राजकोट – द्वितीय निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के अश्विन मेहता को 14,728 मतों से पराजित किया। यह उनकी पहली और बहुत छोटी समयसीमा थी।
1995
वह भाजपा के राष्ट्रीय सचिव चुने गए और नई दिल्ली चले गए। उन्होंने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया। मोदी को 1996 में बीजेपी के महासचिव (संगठन) के रूप में पदोन्नत दिया गया।
1990
मोदी ने 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा और 1991 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा आयोजित करने में मदद की।
1987
मोदी को बीजेपी की गुजरात इकाई के ऑर्गेनाइजिंग सचिव के रूप में निर्वाचित किया गया था।
1986
एल के आडवाणी के बाद, मोदी भाजपा के अध्यक्ष बने। उस समय आरएसएस ने बीजेपी के भीतर अपने सदस्यों को महत्वपूर्ण पदों पर रखने का फैसला किया। 1985 मोदी को आरएसएस ने बीजेपी को सौंपा था।
1985
मोदी को आरएसएस ने बीजेपी को सौंपा था। बाद में 1987 में मोदी ने अहमदाबाद नगरपालिका चुनाव में बीजेपी के अभियान को व्यवस्थित करने में मदद की और बीजेपी ने चुनाव में जीत दर्ज की।
1979
1979 में वह आरएसएस संभग प्रचारक बन गए। सूरत और वडोदरा के क्षेत्रों में आरएसएस गतिविधियों से जुड़ गये। वह दिल्ली में आरएसएस के लिए काम करने गये। जहां उन्हें आपातकाल के इतिहास के बारे में आरएसएस के संस्करण का शोध और लेखन के लिए रखा गया था।
1978
वे आरएसएस के संभाग प्रचारक बने। सूरत एवं वडोदरा में होने वाले संघ के कार्यक्रमों में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे।
1975
आरएसएस द्वारा नरेंद्र मोदी को “गुजरात लोक संघ समिति” का महासचिव नियुक्त किया गया था। आपातकाल के दौरान, गिरफ्तारी से बचने के लिए मोदी को अंडरग्राउंड होने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह सरकार का विरोध करने वाली पैम्फलेट की प्रिंटिंग में शामिल थे।
पूर्व इतिहास
1967
उन्होंने वडनगर में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की। पारिवारिक तनाव के कारण, उन्होंन घर छोड़ दिया। मोदी ने उत्तरी और उत्तर-पूर्वी भारत में यात्रा के दौरान लगभग दो साल बिताए।
1960s
मोदी ने बचपन में वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता की मदद की। बाद में वह बस स्टैंड के पास अपने भाई के साथ एक चाय स्टॉल चलाने लगे।
उपलब्धियां
2007 के एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में मोदी सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री साबित हुए। टाइम मैगजीन के एशियाई संस्करण के कवर पेज पर दिखाई दिये। 2014 में सीएनएन-आईबीएन न्यूज नेटवर्क द्वारा इंडियन ऑफ द ईयर चुने गये। वह 2014, 2015 और 2017 में टाइम मैगजीन के विश्व में 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में से एक थे। 2014 और 2016 में टाइम मैगजीन रीडर्स पोल में मोदी को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ यानि कि साल के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति का खिताब हासिल किया। फोर्ब्स मैगजीन ने उन्हें साल 2014 में दुनिया का 15वां सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना। उन्हें 2015, 2016 और 2018 में दुनिया में 9वें सबसेशक्तिशाली व्यक्ति का दर्जा मिला। 2015 में मोदी “फॉर्च्यून मैगजीन की” दुनिया के सबसे महान नेताओं “की पहली वार्षिक सूची में पांचवें स्थान पर थे। अपनी प्रीमियरशिप के दौरान, भारत 2018 में विश्व बैंक द्वारा बिजनेस रैंकिंग की लिस्ट में 100 वें स्थान पर पहुंच गया।
2014 – 2016 आनंदीबेन पटेल गुजरात के मुख्यमंत्रा बनी
22 मई, 2014 से 07 अगस्त 2016 तक आनंदीबेन पटेल गुजरात की मुख्यमंत्री बनी। आनंदबीन पटेल का जन्म 1941 में गुजरात के मेहसाणा जिले के विजापुर तालुका के खरोद गांव में हुआ था, जहां उनके पिता जेठाभाई शिक्षक थे। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसमें ‘लक्ष्मी’ (धन की देवी) से अधिक ‘सरस्वती’ (बुद्धि की देवी) का महत्व था। आनंदबीन पटेल ने एक राजनेता, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की वर्तमान गवर्नर और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया। वह राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री थी। वह 1987 से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्य हैं। वह 2002 से 2007 तक शिक्षा मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री थे। 2018 में, वह ओम प्रकाश कोहली की जगह मध्य प्रदेश की राज्यपाल बनी, जो सितंबर 2016 से अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे।
2016- 2021 तक विजय रूपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री बने
07 अगस्त 2016 से 13 सितंबर 2021 तक विजय रूपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। वह वर्ष 1971 में वह आरएसएस और जन संघ में शामिल हुए। 2006-2012 तक उन्होंने राज्य सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। वर्ष 2014 में वह राजकोट पश्चिम से विधायक चुने गए। 7 अगस्त 2016 को वह गुजरात के 16 वें मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2017 में फिर से राजकोट पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से गुजरात विधानसभा चुनाव जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री पद को बरकरार रखा।
2021 से अब तक भूपेंद्र पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे
13 सितंबर 2021 से अब तक भूपेंद्र पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। भूपेंद्र भाई पटेल गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य है। 15 जुलाई 1962 को जन्मे भूपेंद्र पटेल भारत के गुजरात राज्य के छोटे से गांव शिलाज के रहने वाले है। 2021 में सीएम बनने के बाद ये गुजरात के 17 वे मुख्यमंत्री होंगे।
गुजरात में लोग भूपेंद्र भाई पटेल को दादा के नाम से भी जानते है, इन्होंने टेक्निकल एग्जाम बोर्ड गुजरात गांधीनगर से डिप्लोमा भी किया और सिविल इंजीनियर में भी डिप्लोमा किया। भूपेंद्र भाई पटेल की नेट वर्थ लगभग 6 करोड़ के आसपास होगी। इसके साथ ही वह गुजरात बीजेपी के सबसे चहेते नेताओ में से एक है। 1999 से लेकर 2000 के बीच भूपेंद्र पटेल गुजरात के स्थाई समिति के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दी।2010 से लेकर 2015 तक थलतेज वार्ड से बीजेपी के पार्षद रहे और राजनीति में अपने करियर का आगाज किया। 2017 केए विधानसभा चुनाव में शशिकांत पटेल को घटलोडिया विधानसभा क्षेत्र से 1 लाख 17 हजार वोटो से हराया। जो अपने आप में भूपेंद्र पटेल की सबसे बड़ी जीत थी।
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