उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक सबसे पहले कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े और हार गए. इसके बाद वह बसपा में शामिल हुए और 2004 में वह लोकसभा का चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. लम्बे राजनीतिक अनुभव के कारण इन्होंने भाप लिया की मोदी लहर है और उसके बाद वर्ष 2016 में इन्होंने बीजेपी का कमल थाम लिया.
उत्तर प्रदेश : योगी की 2.O सरकार में इस बार दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. इसमें पहले केशव प्रसाद मौर्य हैं और दूसरे योगी की पिछली सरकार में कानून मंत्री रहे ब्रजेश पाठक हैं. ब्रजेश पाठक उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े ब्राह्मण चेहरे माने जाते हैं. इसबार वह लखनऊ कैंट की विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह गांधी को 39,512 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हराकर जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे हैं. ब्रजेश पाठक की राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन से हुई और वह लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्रजेश पाठक किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. यूपी की सियासत में बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले ब्रजेश पाठक भाजपा में कद्दावर नेता के साथ ही सूबे के बड़े ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं. इसलिए ब्राह्मण-ठाकुर की राजनीति के लिए चर्चित राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रजेश पाठक को अपना डिप्टी सीएम बनाकर इस जातीय समीकरण को संतुलन करने की कोशिश की है.
योगी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी ब्रजेश पाठक विधि न्याय एवं ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा विभाग में कैबिनेट मंत्री थे. ब्रजेश पाठक का ये राजनीतिक सफर इतना आसान नहीं रहा है. इस राजनीतिक सफर में ब्रजेश पाठक को कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है. ब्रजेश पाठक कभी बसपा का एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे. वहीं मौजूदा भाजपा के इस मंत्री ने अपने जीवन का पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था,जिसमे उनको पराजय का सामना करना पड़ा था.
छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीतिक तक का सफ़र
ब्रजेश पाठक का जन्म 25 जून 1964 को राजधानी लखनऊ से सटे हरदोई जिले के मल्लावा कस्बे के मोहल्ला गंगाराम में हुआ था. इनके पिता का नाम सुरेश पाठक था. ब्रजेश पाठक ने कानून की पढ़ाई की है,लेकिन उन्होंने अपने राजनीति जीवन की शुरुआत अपने छात्र जीवन से की है. 1989 में ब्रजेश पाठक लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद 1990 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे और इसके 12 साल बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. वर्ष 2002 में विधानसभा चुनाव में मल्लावां विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और 130 वोटों के अंतर से चुनाव हार गये थे.
ब्रजेश पाठक ने 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर उन्नाव सीट से भाग्य आजमाया तो राजनीति में पहली बड़ी कामयाबी मिली और चुनाव जीत गए. फिर उसके बाद 2009 में बसपा मुखिया मायावती ने उन्हें राज्यसभा में जगह दिलाई और पार्टी का मुख्य सचेतक बना दिया. बसपा ने 2012 में इनकी पत्नी नम्रता पाठक को उन्नाव सदर सीट से टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गईं. मायावती के कार्यकाल में नम्रता पाठक यूपी राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं और उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ था. वर्ष 2014 की मोदी लहर में ब्रजेश पाठक ने उन्नाव से हाथी की सवारी करनी चाही,लेकिन तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा.
हाथी का साथ छोड़ 2016 में ब्रजेश पाठक भाजपा में हुए शामिल
राजनीति के इतने लंबे करियर की वजह से ब्रजेश पाठक राजनीति के मौसम को परखना सीख चुके थे. इसलिए 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से लगभग 6 महीने पहले उन्होंने बीजेपी का कमल थाम लिया था. 2017 में भाजपा से उन्हें लखनऊ सेंट्रल से चुनाव लड़ने का टिकट मिला और वे अखिलेश सरकार में तब के कैबिनेट मंत्री रहे रविदास मेहरोत्रा को हराकर विधानसभा में पहुंच गए थे. यूपी विधानसभा में यह उनकी पहली एंट्री थी इस जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया. इस बार उन्होंने लखनऊ कैंट से किस्मत आजमाई और शानदार सफलता पाकर, उपमुख्यमंत्री