वीरता का प्रतीक, रणनीति का मूर्तिमान स्वरूप, महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, भारतीय इतिहास के रणभूमि पर वीरता का एक अविस्मरणीय अध्याय हैं। 12 अप्रैल 1482 को जन्मे राणा सांगा ने 20 वर्षों तक मेवाड़ पर शासन किया और अपनी अदम्य वीरता, कुशल रणनीति और अटूट देशभक्ति से इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवाया।
रणनीतिक कौशल और वीरता का अद्भुत संगम:
राणा सांगा न केवल एक कुशल योद्धा थे, बल्कि वे एक महान रणनीतिकार भी थे। उन्होंने अपने युद्धों में कई बार अद्भुत रणनीति का प्रयोग कर दुश्मनों को पराजित किया।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की रक्षा: चित्तौड़गढ़ दुर्ग को मुगलों से बचाने के लिए राणा सांगा ने अद्भुत रणनीति का प्रयोग किया। उन्होंने दुर्ग के आसपास के जलाशयों में पानी भरकर दुश्मनों को घेर लिया। इस रणनीति के कारण मुगल सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
खानवा युद्ध: 1527 में राणा सांगा ने मुगल सम्राट बाबर के साथ खानवा का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा। यद्यपि वे हार गए, लेकिन उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल अद्वितीय थे। 80 घावों के बावजूद वे युद्ध करते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए।
उदाहरण:
रणनीतिक कौशल: चित्तौड़गढ़ दुर्ग की रक्षा के लिए राणा सांगा ने अद्भुत रणनीति का प्रयोग किया। उन्होंने दुर्ग के आसपास के जलाशयों में पानी भरकर दुश्मनों को घेर लिया।
वीरता: खानवा युद्ध में घायल होने के बावजूद राणा सांगा ने हार नहीं मानी। वे युद्ध करते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए।
न्यायप्रिय शासक: राणा सांगा सभी धर्मों और जातियों के लोगों के प्रति समान थे। उन्होंने अपने राज्य में न्याय और कानून व्यवस्था कायम रखी।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व:
राणा सांगा न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे एक कुशल प्रशासक, न्यायप्रिय शासक और कला-प्रेमी भी थे। उन्होंने अपने राज्य में कला, संस्कृति और शिक्षा को भी बढ़ावा दिया।
आज भी प्रासंगिक:
युवाओं के लिए प्रेरणा: राणा सांगा आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी वीरता, शौर्य और देशभक्ति हमें सिखाती है कि हमें हमेशा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।
राष्ट्रीय वीरता का प्रतीक: राणा सांगा राष्ट्रीय वीरता का प्रतीक हैं। उन्होंने अपना जीवन भारत की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।
Sandeep Upadhyay