धामी सरकार ने भू-कानून व मूल निवास मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए सकारात्मक रुख दिखाया

09 Jan, 2024
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देहरादून: उत्तराखंड में भू-कानून के इतिहास पर नजर डालें तो यहां सर्वप्रथम वर्ष 2002 में सरकार की तरफ से सावधान किया गया कि राज्य के भीतर अन्य राज्य के लोग सिर्फ 500 वर्ग मीटर की जमीन ही खरीद सकते हैं। वर्ष 2007 में इस प्रावधान में एक संशोधन कर दिया गया और 500 वर्ग मीटर की जगह 250 वर्ग मीटर की जमीन खरीदने का मानक रखा गया। 6 अक्टूबर 2018 को बीजेपी की तत्कालीन सरकार इसमें संशोधन करते हुए नया अध्यादेश लाई, जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दो और धाराएं जोड़ी गईं। इसमें धारा 143 और धारा 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया। यानी राज्य के भीतर बाहरी लोग जितनी चाहे जमीन खरीद सकते हैं। इस निर्णय के पीछ राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने का तर्क दिया गया था। इस निर्णय के बाद से विरोध में तेजी देखी गई है। इसके साथ ही राज्य में मूल निवास की अनिवार्यता 1950 लागू करने की मांग की जा रही है। 1950 से राज्य में रह रहे लोगों को ही स्थाई निवासी माने जाने की मांग उठ रही है।

सीएम धामी का कहना है​ कि हमारी सरकार भू-कानून व मूल निवास के मुद्दे पर बेहद गंभीर है। मैने स्वयं इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकता में माना है और वर्ष 2022 में ही मैने सख्त भू-कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए पूर्व मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी। इस ड्राफ्ट के अध्ययन के लिए अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की है, जो ड्राफ्ट का अध्ययन कर जल्द रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके बाद इसे कानून का रूप दिया जायेगा। सरकार ने मूल निवासियों के लिए स्थायी प्रमाण पत्र की बाध्यता भी खत्म कर दी है। उत्तराखंड के मूल निवासियों के हित में जो भी होगा, हमारी सरकार अवश्य करेगी। मैं स्वयं इस पूरे मामले में मॉनीटरिंग कर रहा हूं।

सशक्त भू-कानून व मूलनिवास कानून की मांग उठी मांग
उत्तराखंड में भू-कानून व मूल निवास को उत्तराखंडियत से जोड़कर देखा जाता रहा है। यही वजह है कि भू-कानून व मूल निवास की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन होते रहे हैं। बीते 24 दिसंबर को भी हुई स्वाभिमान महारैली भी इसकी गवाह बनी। देहरादून में भू-कानून व मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली गई, जिसमें हजारों की संख्या में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी, उप्रेती बहनों व कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियों ने इस आंदोलन को खुलकर समर्थन दिया। वैसे अक्सर चुनाव से पहले इस तरहे के ज्वलंत मुद्दों पर आंदोलन देखे जाते रहे हैं। कुछ लोग इसे राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाते हैं तो एक वर्ग इसे चुनाव से पहले सरकार पर आमजन की भावनाओं का सम्मान कराने का दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखता है। अलग-अलग वर्गों का देखने का नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि उत्तराखंड में भू-कानून व मूल निवास कानून की मांग लगातार जोर पकड़ रही है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मुद्दे पर तुरंत सक्रियता दिखाई और इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिये हैं। हालांकि, आंदोलनकारियों ने सीएम की पहल का स्वागत तो किया, लेकिन मांग पूरी न होने तक आंदोलन जारी रखने की बात भी कही है।

आंदोलनकारियों का कहना है कि भू-कानून व मूल निवास कानून की दिशा में उत्तराखंड को हिमाचल प्रदेश से सीख लेनी चाहिए, क्योंकि हिमाचल प्रदेश ने अपनी संस्कृति, परंपरा, संसाधनों को प्रभावी तरीके से सुरक्षित रखा है, जबकि उत्तराखंड ऐसा करने में पूरी तरह विफल रहा है। हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्यों के व्यक्तियों को 200 गज जमीन भी खरीदने पर प्रतिबंध है और जो लोग राज्य में जमीन खरीदना चाहते हैं, उन्हें कम से कम 30 वर्षों तक हिमाचल प्रदेश में रहना चाहिए। इसके अलावा, जो व्यक्ति भूमि अधिग्रहण करने का प्रबंधन करते हैं, उन्हें इसे बेचने या स्थायी निवासी बनने से प्रतिबंधित किया जाता है। यशवंत सिंह परमार और अन्य दूरदर्शी नेताओं द्वारा बनाए गए इन कानूनों को बाद के नेताओं द्वारा बरकरार रखा गया है जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए राज्य की भूमि को संरक्षित करने के महत्व को पहचानते हैं। जाहिर है कि भू-कानून व मूल निवास उत्तराखंड में जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा रहा है, ऐसे में सीएम पुष्कर सिंह धामी यदि यह कानून प्रदेश की जनता को सौंप देते हैं तो यह न सिर्फ प्रदेशवासियों के लिए न्याय पाने जैसा होगा, बल्कि सीएम धामी का नाम भी उत्तराखंडियत को सहेजने वाले सबसे बड़े जननेता के रूप में दर्ज हो जाएगा। उन्हें उत्तराखंड के इतिहास में सदैव स्मरण किया जायेगा।

सीएम धामी से उम्मीद, पूरा करेंगे हमारी मांगें : मोहित डिमरी
भू-कानून व मूल निवास कानून स्वाभिमान महारैली के संयोजक मोहित डिमरी का कहना है कि उत्तराखंडवासी राज्य गठन के बाद से ही भू-कानून व मूल निवास कानून की मांग को लेकर आंदोलन करते आ रहे हैं, दुर्भाग्य से किसी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसी कारण हमें एकदिवसीय आंदोलन करना पड़ा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मुद्दे पर सकारात्मक रुख दिखाया है। उन्होंने कार्यवाही भी की है, जिसका हम स्वागत करते हैं। आशा है कि सीएम धामी हमारी मांगों को पूरा करेंगे।

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