सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषी फारूक 2004 से जेल में है। वो पिछले 17 साल जेल में रह चुका है। लिहाजा उसे जेल से जमानत पर रिहा किया जाए। सुप्रीम कोर्ट इसी मामले में बाकी बचे 17 दोषियों की अपीलों पर क्रिसमस की छुट्टियों के बाद जनवरी में सुनवाई करेगा।
नई दिल्ली: सुप्रीम कार्ट ने आज 2002 में हुए गोधराकांड के आरोपित फारुक को जमानत दे दी है और वह जेल से रिहा हो गया है। साल 2002 में गोधरा ट्रेन के जलने से 59 लोगों की मौत हो गई थी। बता दें, फारूक जलती ट्रेन पर पत्थरबाजी करने का दोषी पाया गया था। फारूक ने ट्रेन पर इसलिए पत्थरबाजी की थी, ताकि जलती ट्रेन से लोग उतर न पाएं और उनकी मौत हो जाए। वह पिछले 17 साल से जेल में बंद था। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के खिलाफ जाकर गोधराकांड के आरोपित फारुक को जमानत दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के विरोध में जाकर दी फारुक को जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के कड़े विरोध के बावजूद फारुक को जमानत दी है। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साल 2002 के गोधरा कांड में पत्थरबाजी करने वालों में से 15 दोषियों की रिहाई का विरोध किया था। सरकार ने पत्थरबाजों की पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया। यहां सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है। मामला है कि पत्थरबाजी के चलते जलती हुई बोगी से 59 पीड़ित बाहर नहीं निकल पाए थे। उन्होंने कहा कि पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर न निकल सके और बाहर से भी कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए न जा पाए।
सुप्रीम कोर्ट का फारुक को रिहा करने का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषी फारूक 2004 से जेल में है। वो पिछले 17 साल जेल में रह चुका है। लिहाजा उसे जेल से जमानत पर रिहा किया जाए। सुप्रीम कोर्ट इसी मामले में बाकी बचे 17 दोषियों की अपीलों पर क्रिसमस की छुट्टियों के बाद जनवरी में सुनवाई करेगा।
क्या है गोधराकांड?
27 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है। इस दिन गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन को उपद्रवियों ने आग लगा दी थी। ट्रेन की बोगी में सवार 59 लोग जलकर मर गए थे, इसमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। इस घटना के बाद गुजरात में 28 फरवरी 2002 में इस घटना के बाद गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़क गया, जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए। 03 मार्च 2002 को गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में आरोपितों को गिरफ्तार किया गया। लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया। 25 मार्च 2002 को सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया। 17 जनवरी 2005 को यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि गोधरा कांड महज एक ‘दुर्घटना’थी। 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि यूसी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है, क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है। 26 मार्च 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड और फिर हुए दंगों से जुड़े 8 मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया। 18 सितंबर 2008 को नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी। इसमें कहा गया कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था। 22 फरवरी 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया। 1 मार्च 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 दोषियों को फांसी और 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने सभी दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
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