गुरुपूर्णिमा: भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा सदैव से ही गौरवशाली रही है। ज्ञान, प्रेरणा और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह परंपरा अनादि काल से अविचलित रूप से चली आ रही है। इसी परंपरा का सम्मान करते हुए, गुरु पूर्णिमा का पर्व प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व:
गुरुओं का सम्मान: इस पावन अवसर पर, शिष्य अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके मार्गदर्शन के लिए उनका आभार प्रकट करते हैं।
ज्ञान प्राप्ति का अवसर: गुरु पूर्णिमा ज्ञान प्राप्ति का उत्तम अवसर है। इस दिन, गुरु शिष्यों को ज्ञान और जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति: गुरु पूर्णिमा आध्यात्मिक उन्नति का पर्व भी है। इस दिन, लोग ध्यान, मंत्र जाप और अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार का प्रयास करते हैं।
अनादि गुरु की उपासना: योग दर्शन के अनुसार, परमपिता परमेश्वर हमारे “अनादि गुरु” हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी वाणी अर्थात् शास्त्रों का सम्मान कर, शिष्य जीवन जीने की उचित दिशा प्राप्त करते हैं।
आचार्य श्री मुमुक्षव देव
आधुनिक समाज में गुरु पूर्णिमा का महत्व:
नैतिक मूल्यों का संचार: नैतिक मूल्यों का ह्रास आधुनिक समाज की एक गंभीर समस्या है। गुरु पूर्णिमा हमें सदाचार, ईमानदारी, दया और करुणा जैसे मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देती है।
सामाजिक सद्भाव: गुरु पूर्णिमा हमें विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के बीच सद्भाव और भाईचारा स्थापित करने का संदेश देती है।
आत्म-विकास का मार्ग: गुरु पूर्णिमा हमें आत्म-अनुशासन, आत्म-जागरूकता और आत्म-विकास के महत्व को समझने में मदद करती है।
निष्कर्ष:
गुरु पूर्णिमा ज्ञान, प्रेरणा और मोक्ष का पावन समारोह है। यह हमें जीवन में सफलता और आनंद प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। आइए हम इस पावन अवसर पर अपने गुरुओं का सम्मान करें और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
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संदीप उपाध्याय