बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 52 को लागू करने के राज्य के अधिकार को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में राज्य सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अधिकार है, ताकि संस्थागत हितों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बस्तर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एनडीआर चंद्रा की अपील को भी खारिज कर दिया। प्रोफेसर चंद्रा ने राज्य सरकार द्वारा उन्हें पद से हटाने के आदेश को चुनौती दी थी। वर्ष 2013 में प्रो. चंद्रा पर प्रशासनिक कदाचार और वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगने के बाद राज्य सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया था। इस प्रकरण की जांच के लिए 2015 में एक समिति का गठन किया गया, जिसने सितंबर 2016 में उन्हें हटाने की सिफारिश की।
कुलपति चंद्रा ने इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की, जिसे सिंगल बेंच ने खारिज कर दिया। बाद में उन्होंने सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
इस मामले में विचारणीय बिंदु छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 52 का सही प्रयोग था, जो राज्य सरकार को विवि के प्रशासन में हस्तक्षेप की अनुमति देता है। चंद्रा का तर्क था कि उनके खिलाफ उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला। परंतु हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि राज्यपाल की संतुष्टि, जो धारा 52 के तहत आवश्यक है, न्यायिक मानकों से मूल्यांकन योग्य नहीं है।
कोर्ट ने शुक्रवार को निर्णय देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन के मामलों में संस्थागत हितों की रक्षा के लिए राज्य सरकार को अधिनियम के प्रावधानों का प्रयोग करने का अधिकार है।