हिंद महासागर उष्णकटिबंधीय सुपर साइक्लोन ओडिशा से टकराव में लगभग 15000 लोगों की मौत बताई जाती है लेकिन दावा है कि इस तूफान की वजह से 50 हजार से ज्यादा की जान गई थी और 40 लोग अब तक लापता है। तक़रीबन 25 लाख पालतू जानवर मारे गए, जिनमें से 4 लाख गायें थी।
नई दिल्ली: भारतीय इतिहास में 29 अक्टूबर का दिन बेहद दर्दनाक रहा है क्योंकि इस दिन 29 अक्टूबर 1999 को भारत में सबसे घातक हिंद महासागर उष्णकटिबंधीय सुपर साइक्लोन ओडिशा से टकराया, जिसमें करीब 9,885 लोगों की जान गई थी। इस तूफान की केंद्रीय दबाव 912 मिलिबार था, जो एक रिकॉर्ड है। जबकि इसी दिन 29 अक्टूबर 2005 को दिल्ली बम धमाकों में 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
कैसे हुआ था 29 अक्टूबर 1999 को भारत में सबसे घातक हिंद महासागर उष्णकटिबंधीय सुपर साइक्लोन का हादसा?
एक उष्णकटिबंधीय विक्षोभ दक्षिण चीन समुद्र में अक्टूबर के अंतिम दिनों में बना। पश्चिम की तरफ जाते हुए यह तूफान अक्टूबर 25 को एक उष्णकटिबंधीय अवसाद में विकसित हुआ। अगले दिन गरम समुद्र पानी पर से गुजरते हुए यह एक उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान बना। एक दिन के अन्दर यह तूफान एक सामान्य चक्रवात से एक बेहद शक्तिशाली चक्रवाती तूफान में विकसित हुआ। 912 मिलिबार की केंद्रीय दबाव और 260 कि.मी. प्रति घंटे की हवा गति के साथ ओड़ीसा के तट के ऊपर से गुजरा। जमीन की प्रभाव के वजह से यह तूफान शक्तिहीन होकर एक मामूली चक्रवाती तूफान बन गया और जल्द ही नवम्बर 3 को अपनी शक्ति खोकर नष्ट हो गया।
16 लाख लोग हुए थे बेघर
हजारों परिवारों को मजबूरन ओडिशा के तटीय इलाकों से हटाया गया। इनमें से कही को रेड क्रॉस चक्रवाती तूफान बचाव क्षेत्रों में जगह दिया। यह तूफान ने घनघोर बारिश बरसाया, जिसके कारण कही इलाकों में पानी भर गया। 17110 कि.मी. के क्षेत्र के फसल बर्बाद हो गए। लगभग 275000 घरों को क्षति पहुची, जिसके कारण 16 लाख लोग बेघर हो गए।
15000 लोगों की हुई थी मौत
लगभग 15000 लोगों की मौत बताई जाती है लेकिन दावा है कि इस तूफान की वजह से 50 हजार से ज्यादा की जान गई थी और 40 लोग अब तक लापता है। तक़रीबन 25 लाख पालतू जानवर मारे गए, जिनमें से 4 लाख गायें थी।
अब आपको बताते हैं 29 अक्टूबर 2005 को दिल्ली बम धमाकों के बारे में
तारीख थी 29 अक्टूबर 2005
आज से यही कोई 17 साल पहले, वो धनतेरस का दिन था, तारीख थी 29 अक्टूबर 2005, सत्ता में थी कॉन्ग्रेस, दिल्ली के बाजार सजे-धजे थे, लोग घरों से त्योहारों की खरीदारी करने बाहर निकले थे। वहीं तमाम लोग ऑफिस से लौटने की तैयारी कर रहे थे या अभी रास्ते में थे। दो दिन बाद ही दिवाली थी, उसके बाद गोवर्धन पूजा और अगले दिन भैया दूज इसलिए चारों तरफ भीड़-भाड़ और खुशी का माहौल था। तभी शाम के ठीक साढ़े 5 बजे से अगले आधे घंटे तक एक के बाद एक दिल्ली के तीन अलग-अलग इलाकों में, तीन धमाके हुए और त्योहारों की खुशी मातम में बदल गई। रौनक बम धमाकों के धुएँ में काली हो गई। चारों तरफ भगदड़-हाहाकार, किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें? – जहाँ हैं वहीं रहे या वहाँ से निकले, क्योंकि जैसे एक के बाद एक लगातार धमाकों की खबरें आ रही थी, लग रहा था मानो पूरी दिल्ली में ही आतंकियों ने बम बिछा दिए हों, जो एक साथ नहीं बल्कि एक के बाद एक फटेगें, ऐसे में पता नहीं अगला नंबर किसका हो।
धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ माना गया
तब दीपावली के जश्न में डूबी दिल्ली अचानक हुए इन आतंकी हमलों से दहल गई थी। पहला धमाका पहाड़गंज में हुआ, जिसमें 9 लोगों की मौत हुई और 60 से अधिक घायल हुए। दूसरा धमाका गोविंदपुरी में हुआ, जिसमें 4 लोग घायल हुए जबकि तीसरा धमाका सरोजनी नगर में हुआ। जिसमें सबसे ज्यादा 50 लोगों की मौत हुई और 127 से ज्यादा लोग घायल हुए। इन धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ माना गया। कोर्ट ने तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आपराधिक साजिश रचने, हत्या, हत्या के प्रयास और हथियार जुटाने के आरोप तय किए थे।
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