जयपुर । खेजड़ी, कैर, लसोड़ा, काचरी, कुमुट आदि शुष्क वनस्पतियां थार की धरोहर और जैव विविधता का मुख्य अंग है। लेकिन प्रोटीन सहित कई पोषक तत्वों से भरपूर पंचकूटा की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। जबकि यह रूक्षफल कैंसर, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखता है। इसके प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन से किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही इससे फूड सप्लीमेंट तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों को शोध करने की जरूरत है।
राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा में 10 दिवसीय आईसीएआर वैज्ञानिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने कहा कि सरकार प्रयास करें तो इन पंचफलों के साथ-साथ पंचकूटा सब्जी को भी जीआई टैग प्राप्त हो सकता है। साथ ही प्रदेश से जैविक फसल निर्यात का आंकड़ा बढ़ सकता है। क्योंकि पंचफल कृषि वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण में पूर्णतः जैविक फल है। यह शुष्क फल भी लघु-सीमांत के साथ-साथ भूमिहीन किसानों के लिए आय का जरिया बन सकता है। उन्होंने बताया कि शुष्क-अर्द्धशुष्क परिस्थितियों में इन सब्जी फसलों में आधुनिक तकनीक और प्रशिक्षण के जरिए इनकी उत्पादकता को बढाया जाना चाहिए। यह सभी शुष्क फसलें किसानों के लिए लाभकारी है साथ ही निर्यात योग्य भी है। थार की आबोहवा में यह फसले स्वतः ही फलती-फूलती है।
उन्होंने कहा कि यह सभी शुष्क सब्जी सूखे मेवे से ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर है। पंचकूटा कार्बाेहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, रेशा, फाइबर, खनिज (कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, जस्ता और मैग्नीशियम), एंटीऑक्सिडेंट (कैरोटीनॉयड, एस्कॉर्बिक एसिड और फ्लेवोनोइड्स), फिनोल, टैनिन, सैपोनिन और दूसरे फाइटोकेमिकल का मूल्यवान स्रोत है।
संस्थान के निदेशक डॉ. एएस बालोदा ने कहा कि पंचकूटा प्रदेश को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मेडिसनल वेजीटेबल के नाम से अलग पहचान दिलाने की क्षमता रखता है। क्योंकि दुनिया में दूसरे देशों के पास फसल उत्पादन के लिए अतिरिक्त क्षेत्र नहीं है।
पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. ऊदल सिंह ने बताया कि इस वैज्ञानिक प्रशिक्षण में राजस्थान सहित आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश से 25 वैज्ञानिक भाग ले रहे है। कार्यक्रम को उद्यानिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एमसी गुप्ता, प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ. योगेश शर्मा ने भी सम्बोधित किया।