मध्यप्रदेश में प्राकृतिक खेती ने पकड़ी रफ्तार, आत्मनिर्भर बन रही पंचायतें

25 Jul, 2024
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मध्य प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार और जर्मन संस्था जीआईजेड मिलकर काम कर रहे हैं। भारत और जर्मनी के बीच हुए एक समझौते के तहत मध्य प्रदेश में 16 परियोजनाएं चल रही हैं, जिनका उद्देश्य राज्य की पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाना है।

आत्मनिर्भर पंचायत-समृद्ध मध्यप्रदेश कार्यशाला:

हाल ही में आयोजित एक कार्यशाला में जनजातीय जिलों की पंचायतों से आई कृषक महिलाओं ने प्राकृतिक खेती के अपने अनुभव साझा किए। इन महिलाओं ने बताया कि कैसे वे गाय, गोबर और गोमूत्र आधारित खेती कर रही हैं और इससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।

प्राकृतिक खेती के लाभ:

  • जलवायु परिवर्तन से लड़ाई: प्राकृतिक खेती जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करती है।
  • मिट्टी की उर्वरता में सुधार: प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
  • स्वस्थ खाद्य: प्राकृतिक खेती से उत्पादित खाद्य पदार्थ स्वस्थ होते हैं।
  • आर्थिक लाभ: प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि होती है।

महिलाओं ने साझा किए अपने अनुभव:

मंडला, शाजापुर और सतना जिलों की कई महिलाओं ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने गांवों में प्राकृतिक खेती को अपनाया है। उन्होंने बताया कि कैसे वे जीवामृत, वर्मी कंपोस्ट और अन्य जैविक खाद का उपयोग कर रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उन्होंने अपने घरों में किचन गार्डन बनाए हैं और सब्जियां उगा रही हैं।

जीआईजेड का योगदान:

जर्मन संस्था जीआईजेड मध्य प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। जीआईजेड किसानों को प्रशिक्षण दे रही है और उन्हें आवश्यक उपकरण और तकनीक प्रदान कर रही है।

सरकार का समर्थन:

मध्य प्रदेश सरकार भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य सरकार किसानों को सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन दे रही है।

निष्कर्ष:

मध्य प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयास सफल साबित हो रहे हैं। राज्य की पंचायतें आत्मनिर्भर बन रही हैं और किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।

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