शारदेय नवरात्र के मौके पर जहां पूरा देश जगतजननी की महिमा मे डूबा है वही जबलपुर के लंकेश ने दशानन रावण की प्रतिमा को विराजित कर उनकी अराधना और तप शुरू कर दिया है। सुनने और समझने मे ज़रा अजीब लगेगा लेकिन संस्कारधानी समेत पूरे महाकौशल मे इस दशानन के चर्चे है। नवरात्र की पंचमी पर दशानन की प्रतिमा स्थापित करना और दशहरे पर विसर्जन की परंपरा का पालन,,,,,, लंकेश 1975 से कर रहा है। राम के दौर मे रावण की महिमा मे डूबे लंकेश की कहानी वाकई सबसे अलग है। क्योंकि लंकेश पिछले 49 सालों से रावण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करते चले आ रहे हैं लंकेश का कहना है कि आने वाले समय में यह परंपरा उनके पौते संभालेंगे।
भगवान राम को पूजने वाले कई लोगों को आप जानते होंगे लेकिन कोई रावण की पूजा करता हो तो सुनकर थोडा अटपटा सा लगता है। लेकिन यह हकीकत है, जबलपुर के पाटन इलाके में रहने वाला लंकेश अपनी इस अनोखी आस्था के लिए अलग पहचान रखता है। जब लोग सुबह उठकर भगवान राम को याद करते हैं तो लंकेश रावण की पूजा कर रहे होते हैं। इसके साथ ही सबसे खास बात यह है कि रावण के भक्त लंकेश ने अपने पुत्र और पुत्रों के नाम भी रावण के पुत्र पुत्रों के नाम पर रखे हुए हैं। और वह अपनी पत्नी को भी इसी नाम से बुलाते हैं
बाइट – संतोस नामदेव, रावण भक्त लंकेश
जबलपुर के पाटन इलाके में रहने वाले संतोष नामदेव उर्फ लंकेश पेशे से टेलर हैं लेकिन इनकी रावण भक्ति से हर कोई प्रभावित है। 49 सालों से संतोष रावण की पूजा करते आ रहे हैं जिसके कारण इनकी पहचान भी लंकेश के रूप में ही बन चुकी है। संतोष के साथ उनके परिवार और पडोस के लोग भी रावण का पूजन करते है। भले ही समाज रावण की बुराई से परिचित हो लेकिन लंकेश रावण की अच्छाईयो को ग्रहण कर आगे बढ़ रहे है। संतोष नामदेव उर्फ लंकेश की रावण भक्ति के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। जब ये छोटे थे तो रामलीला में रावण की सेना में सैनिक का किरदार निभाते थे। कुछ सालों बाद इन्हें रावण का किरदार निभाने का मौका मिला और ये उस किरदार से इतना प्रभावित हुए कि उसे अपना गुरू और ईष्ट मान लिया। तब से यह रावणभक्ति का सिलसिला चला आ रहा है।
संतोष नामदेव का मानना है कि रावण बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी था। उसके अंदर कोई भी दुर्गण नहीं था। उसने जो भी किया वह अपने राक्षस कुल को तारने के लिए किया था। रावण ने सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें अशोक वाटिका में रखा जहां किसी भी नर पशु पक्षी, जानवर या राक्षस को जाने की अनुमति नहीं थी। यह उसकी सीता के प्रति सम्मान की भावना को व्यक्त करता है। रावणभक्त लंकेश ने अपने दोनों बेटों का नाम भी मेघनाद और अक्षय रखा है। जो रावण के पुत्रों के नाम थे।
संतोष पिछले 49 वर्षों से रावण की भक्ति कर रहे हैं और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका मानना है कि जो कुछ भी उनके पास है वह सब रावण की भक्ति से ही मिला है। उनकी इस अनोखी भक्ति से आसपास के लोग काफी प्रभावित हैं। नवरात्रि के समय पर जब वे रावण की प्रतिमा रखते हैं तो क्षेत्र के लोग उन्हें पूरा सहयोग करते हैं और धूमधाम से रावण की शोभायात्रा भी निकालते हैं। वैसे तो हिंदुस्तान में कई धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और सभी अपने अपने धर्मों के अनुसार ईष्ट देव की पूजा करते हैं लेकिन संतोष नामदेव की रावणभक्ति अपने आप में अनूठी है।
जबलपुर से सुनील सेन की रिपोर्ट